चली हवा कोई ताजा
सुगंध फिजाँ में छाई
खिली बसंती धूप नई
प्रिय तुम जब जब मुस्काई
रूप बदल कर नित नवीन
औ कर के विविध शृंगार
अधरों पर मुस्कान लिए
अति सुंदर यौवन हार
हो मन मृत नृत्य तरंगित
सम्मुख जब जब तुम आई
खिली बसंती धूप नई
प्रिय तुम जब जब मुस्काई
गीत प्रगीत अनुगुंजित स्वर
खुले जब जब नलिन अधर
भंजित पौरुष मान उधर
हर गाँव और नगर डगर
सब तुम्हारे दीवाने
जादू क्या तुम दिखलाई
खिली बसंती धूप नई
प्रिय तुम जब जब मुस्काई